Friday, November 27, 2009

गाँधी जी, पत्रकारिता और स्वतंत्रता आंदोलन

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विद्या विनोद गुप्त


स्वतंत्रता हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है - इसे हम लेकर रहेंगे, का नारा देने वाले स्वंतत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक का निधन जब 31 जुलाई 1920 को हुआ तो मोहनदास करमचंद गांधी ने राष्ट्रीय आंदोलन की बागडोर अपने हाथों में ली और असहयोग आंदोलन का शुभारंभ हुआ । हंदर आयोग की सिफारिशों के फलस्वरूप कार्यवाही पर देश भर में जो आजादी की लहर चली उससे उनके आंदोलन को बल मिला। गांधी जी अपने कार्यक्रम को राष्ट्रव्यापी बनाने में समाचार पत्रों की भूमिका को महत्वपूर्ण मानते थे। कलकत्ता से भारत मित्र, कलकत्ता समाचार और विश्व बंधु का प्रकाशन होता था। कानपुर से प्रताप का और इलाहाबाद से भविष्य का।

गांधी जी के अहिंसा त्याग और सत्याग्रह के सिद्धांत की सफलता ने भारत का मन मोह लिया था - सारा जनमत गांधी जी के साथ था और अनेक नए शक्तिशाली समाचार पत्रों का प्रकाशन भी आरंभ हुआ। जबलपुर, खंडवा से कर्मवीर का कलकत्ता से स्वतंत्र का, काशी से आज का और कानपुर से वर्तमान का। इसी बीच पंजाब में अमृतसर, लाहौर और गुजरावाला में कलकत्ता में गुजरात के अहमदाबाद, वीरम गांव, नडियाड में जो हिंसक घटनाएं हुई जिनसे गांधी जी को अत्यधिक दुख हुआ। ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ समाचार छापने पर अधिकांश समाचार पत्र जप्त कर दिए गये। प्रेस बंद कर दिए गए। उन पर जुर्माना कर दिया गया । जुर्माना न पटाने पर जेल की सजा दी गई। अनेक पत्र पत्रिकाएं भूमिगत हो गई । उस समय जितना महत्व गणेश शंकर विद्यार्थी के संपादन में कानपुर से निकलने वाले पत्र प्रताप का था उतना ही महत्व मध्य प्रांत में कर्मवीर का था। कर्मवीर के संपादक थे पं. माखनलाल चतुर्वेदी एक भारतीय आत्मा। उन्होंने मातृभूमि और मनुष्यता पर बलि होने का आव्हान किया और राजद्रोह के अपराध में उन्हें सजा हो गई । कर्मवीर के नाम के प्रेरणा उन्हें उस नाम से मिली जिसके द्वारा उस समय की जनता गांधी जी को संबोधित करती थी। कई बार उन्हें जेल जाना पड़ा । 63 बार उनके घर और समाचार के दफ्तर की तलाशी ली गई। वर्धा के सुमति और नागपुर के संकल्प के संपादकों को परेशान किया गया धमकी दी गई। फिर दिल्ली से अर्जुन निकला, कलकत्ता से मतवाला और नागपुर से प्रणवीर और श्री शारदा।

महात्मागांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन चलाने का समर्थन करने के लिए मासिक पत्रिकाओं का प्रकाशन भी प्रारंभ हुआ जिससे गांधी जी के आंदोलन को बल मिला साथ ही हिंदी की श्री वृद्धि हुई। पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा संपादित सरस्वती, दुलारे लाल भार्गव द्वारा लखनऊ से प्रकाशित माधुरी रामरख सिंह सहगल द्वारा इलाहाबाद से प्रकाशित चांद तथा उपन्सास सम्राट मुंशी प्रेमचंद द्वारा वाराणसी से प्रकाशित हंस ने गांधी के सत्य और अहिंसा पर हिंदी का अभिषेक किया। भार्गव ने एक दूसरी पत्रिका सुधा निकाली और रामवृक्ष बेनीपुरी ने वीणा । कुछ पत्रिकाएं सरस्वती की परंपरा से हटकर राजनीतिक विषयों पर भी टिप्पणियां तथा साहित्यिक कृतियां जैसे कविताएं, कहानियां, लेख, निबंध, नाटक आदि भी प्रकाशित करती थीं।

भारत मित्र के संपादक लक्ष्मण नारायण गर्दें ने गांधी जी द्वारा लिखित पुस्तक हिंदू स्वराज्य का पहला हिंदी रूपांन्तर अपने पत्र में प्रकाशित किया । उन्होंने गांधी जी की अनुमति लेकर ऐसा प्रबंध किया कि गांधी जी के यंग इंडिया में प्रकाशित होने वाले लेख की अग्रिम प्रति उन्हें उपलब्ध हो जाती थी इस व्यवस्था के कारण गांधी जी का लेख अंग्रेजी समाचार पत्रों से एक दिन पूर्व हिंदी समाचार पत्रों में छप जाता था । 7 मई 1922 के आज के अंक में जब छपा कि हमारा उद्देश्य अपने देश के लिए सब प्रकार से स्वतंत्रता उपार्जन है। हम हर बात में स्वतंत्र होना चाहते हैं । हमारा लक्ष्य यह है कि हम अपने देश का गौरव बढ़ावें । अपने देशवासियों में स्वाभिमान का संचार करें, उनको ऐसा बनावे कि भारतीय होने का उन्हें अभिमान हो इसमें तनिक भी संकोच नहीं। गांधी जी के इस उद्बोधन से देश के चारों ओर से गांधी जी जय-जयकार गूंजने लगी । नरम-गरम दल के सभी लोग गांधी जी के नेतृत्व में कांग्रेस के ही मंच पर आ गए। मोतीलाल नेहरू,पं. जवाहरलाल नेहरू, राजगोपालचार्य, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, मौलाना आजाद, डॉ. अंबेडकर, विपिन चंद्र पाल, लाला लाजपतराय, विजय लक्ष्मी पंडित, डॉ. राधाकृष्णन, अब्दुल गफ्फार खां, मोरारजी देसाई, पं. रविशंकर शुक्ला, पं. द्वारिका प्रसाद मिश्रा, रवींद्र नाथ टैगोर, पुरुषोत्तम दास दंडन, सुभाष चंद्र बोस, ठा. छेदीलाल बैरिस्टर, ठा. प्यारेलाल सिंह, मदन मोहन मालवीय, ईश्वर चंद्र विद्या सागर, सरोजनी नायडू, इंदिरा गांधी, जय प्रकाश नारायण, भूलाभाई देसाई, सरदार पटेल, गोविंद वल्लभ पंत, कृपलानी, जगजीवनराम, अरविंद घोष, राजकुमारी अमृत कौर, गोपाल कृष्ण गोखले, गुलजारी लाल नंदा, देशबधु चितरंजनदास, भगिनी निवेदिता दास, जमुना लाल बजाज, बिड़ला तेज बहादुर, वीरसावरकर, सुहरा वर्दी, शेख अब्दुला, अरूणा आसफ अली, आदि लाखों की संख्या में स्वतंत्रता सेनानियों ने स्वतंत्रता संग्राम में गांधी जी का मनोयोग से साथ दिया तथा इस आंदोलन को आगे बढाने में समाचार पत्रों की भूमिका महत्वपूर्ण रही ।

क्रांतिकारियों के दमन तथा खुदीराम बोस, सरदार भगत सिंह को फांसी की सजा, आजाद की हत्या के कारण समाचार पत्र क्रांतिकारियों के साहस और वीरता के गीत गा रहे थे । फांसी पर चढ़ने वाले युवकों के गुण गा रहे थे । स्वराज ने अपने संपादकीय लेख में शंखनाद किया कि देशवासी निद्रा से जागें और देखें कि कितनी बुरी तरह से विदेशी अंग्रेजी ने इस देश का शोषण किया है ।

गांधी जी द्वारा लिखित हिंद स्वराज, सर्वोदय आत्मकथा, सत्याग्रह समाचार और हरिजन नामक पत्र में गांधी जी ने जो दिशा निर्देश दिए थे बिलकुल नए ढंग के थे । जनता ने उन्हें अवतार के रुप में देखती थी । वे राजनैतिक और सामाजिक वातावरण पर छा गए थे जैसे देशवासियों पर जादू कर दिया हो। उस समय स्थान-स्थान और गली-गली में अधनंगे बच्चे भी गांधी जी की जय के नारे लगाते दौड़ते दिखाई देते थे । इसका परिणाम यह हुआ कि हर शहर और ग्राम में जहां समाचार पत्र नहीं पहुंच सकते थे नए बुलेटिन और पाम्पलेट बांटे जाने लगे ।

मध्यप्रांत में भी कर्मवीर ही नहीं श्री शारदा, प्रणवीर, साहस, देहाती दुनिया, छात्र सहोदर, महाकौशल आदि का प्रकाशन आरंभ हुआ और राष्ट्रीय आंदोलन को आगे बढ़ाया । कलकत्ता समाचार ने लिखा - सारे देश की निगाह महात्मा गांधी पर केंद्रित है तो नागपुर के श्री शारदा के लिखा - जेल जाना भारत को स्वाधीन कराने का मार्ग है और कलकत्ता से साप्ताहिक मतवाला ने लिखा गांधी विहीन स्वराज यदि स्वर्ग से भी सुंदर हो तो वह नरक के समान त्याज्य है । उस एक महात्मा पर शत शत स्वराज न्यौछार कर देने योग्य है । यदि अपने देशमें स्वराज की प्रतिष्ठा चाहते हैं तो तन मन धन से अपने नेता महात्मा गांधी के आदेशों का पालन करना आरंभ कीजिए । समाचार पत्रों में संपादकीय लेख लिखे जाने लगे- रोलेट एक्ट पर, पंजाब की दमन नीति पर, जलिया वाला बाग पर, खिलाफत आंदोलन पर, अली बंधुओं एवं अन्य की गिरफ्तारी पर, अहिंसात्मक सत्याग्रह पर, गांधी जी की जेल यात्रा पर, उनकी प्रार्थना सभाओं पर, विदेशी वस्त्रों की होली जलाने पर, चौरा चौरी कांड पर, नमक सत्याग्रह पर, युवराज प्रिंस आफ वेल्स के आगमन के बहिष्कार पर, इस तरह समाचार पत्र राष्ट्रीयता के प्रतीक बन गए ।

भूमिगत समाचार पत्रों के नाम भी खूब थे- चिंगारी, बवंडर, चंद्रिका, रणडंका, शंखनाद, ज्वालामुखी, तूफान, रण चंद्रिका, जन संग्राम बोल दे धावा आदि । उन दिनों पायनियर और लीडर आदि एक-एक आने में, आज आदि दो-दो पैसे में बिकते थे । हाकर चिल्लाता था- ब्रिटिश सरकार की छाती कूटने वाला अखबार इनडिपेंडेंस डे लो । अंतिम चरण में 1942 के भारत छोड़ो करो या मरो आंदोलन के समय प्रेस इमरजेंसी अधिनियम के अंतर्गत समाचार पत्रों को कुचलने का भरसक प्रयास किया गया । दिल्ली के हिंदुस्तान और कितने ही अन्य समाचार पत्र बंद हो गए । देश के प्रस्तावित विभाजन के साथ 15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिली और समाचार पत्रों का गांधी जी को भरपूर समर्थन मिला उस समय चार प्रमुख दैनिक समाचार पत्र थे, विश्व मित्र, आर्यावर्त, हिन्दुस्तान और राज । सभी ने उस दिन के अपने अग्रलेख में सारे देशवासियों की भावनाओं को चित्रित करते हुए लिखा-अब वह दिन दूर नहीं जब भारत सभी दिशाओं में उन्नति करता हुआ विश्व का महानतम लोकतंत्र बन जाएगा और विश्व में उसका महत्वपूर्ण स्थान होगा ।

30 जनवरी 1948 को प्रार्थना सभा मे एक उत्तेजक युवक की गोली से गांधी की हत्या हो गयी । अंतिम समय भी हे राम कहते हुए प्राण छोड़ा और अनंत में विलीन हो गये । कौन कहता है गांधी जी मर गए- लोग भले ही गांधी जी को भूल जावें पर जब तक समाचार पत्र रहेंगे गांधी जी अमर रहेंगे ।
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