हरियाणा

मन की असमंजस (कविता) {हरयाणवी रागणी}

आज पता नहीं क्यूँ अपणी मातृभाषा की गोद में बैठने का मन हो रहा है!मै मूलतः हरयाणा का रहने वाला हूँ,हरयाणवी ही वो पहली भाषा है जो मेरी जुबान ने सर्वप्रथम बोली!सो मातृभाषा "हरयाणवी" को कह दू तो ज्यादा गलत न होगा!जैसे हिंदी में कविता,गीत और ग़ज़ल होती है वैसे ही हरयाणवी में 'रागणी' होती है!छंदों का खूबसूरत सा मिश्रण,एक लय और ताल पर जब इसे सुनते है तो कानो का उद्देश्य पूर्ण होता प्रतीत होता है!आप जो अभी पढने जा रहे हो वो एक तुच्छ सा उदाहरण है 'रागणी' का!अब मै तो तुच्छ ही लिख सकता हूँ असली कलाकारों के सामने!
पंडित लख्मीचंद, पंडित मांगे राम,पंडित जगदीश चन्द्र वत्स आदि बहुत बड़े-बड़े नाम है इस श्रृंखला में जिनकी रचनाये वास्तव में महान है!उनको पढ़ कर-सुन कर मेरे चंचल मन में भी कुछ चिड़ियाए फुदक उठती है कभी-कभी!उसी का एक नतीजा आज आप के समक्ष है!

नुक्सान ठा रहया सूँ मै तेरे तै ना कहवण का!
फेर बेरया ना यो बखत रहवण का ना रहवण का!

बोल कै बता दिया तो ख़तम कहाणी हो ज्यागी,
इब तो तू अपणी सै फेर चीज बीराणी हो ज्यागी,
तू बी अणजाणी हो ज्यागी ढूंढेगी बहाना जावण का!

मन्ने जो कहया नहीं के वो कहणा जरुरी सै,
तू भी तो कह नहीं सकती तेरी अपणी मज़बूरी सै,
जो बात अधूरी सै,करू पूरी जो टाला करू शरमावण का!

जो नहीं कहया तो फेर भी के चाला हो सै,
जिसकी न कोई गौर करै उसका भी राम-रुखाला हो सै,
यु जखम कुधाला हो सै नहीं होता दिखावण का!

मीन तडपे ज्यू पाणी तै बहार आणे पै,
चकवा तरसै ज्यू बादलो के बिन बरसे जाणे पै,
न्योए तेरे तै ना कह पाणे पै हाल मेरा नहीं बतावण का!

कोई के सम्झेग्या जो मेरे जी पै बण रहयी,
कुछ हरदीप माड़ा कुछ किस्मत माड़ी बण रहयी,
बात रह गयी अणकही और हौसला भी नहीं समझावण का!
कुंवर जी,


जिकर करण के लायक नहीं और चुप रहया ना जावै, {हरयाणवी रागणी},
ये मन भी...बस कुछ भी कहीं भी महसूस करने लग जाता है,
नहीं सोचता चलो घर की ही तो बात है,पर नहीं...
इन शब्दों के आगे भला हमारी क्या बिसात है...?
घर की हो या बहार वालो की अब घात तो घात है....

आज कुछ आपबीती जो जैसे अनुभव की थी ज्यों की त्यों प्रस्तुत करने को मान कर रहा है.....भाषा हरियाणवी थी, थोडा-बहुत है भी फिर भी सभी के लिए सरल रूप में लिखने की चेष्टा की है....जहाँ थोड़े कठिन शब्द है साथ में सरल अर्थ भी दिया गया है.....



जिकर करण के लायक नहीं और चुप रहया ना जावै,
जितना मै चुप रहणा चाहूँ यो रंज जिगर नै खावै!

धोखा और लालच आजकल बेहवै सै नस-नस मै,
करते बखत(1) ना ख्याल करै के कर रहये हम आपस मै,
जिब(2) बस मै बात ना आती दिक्खै तो जान तक लेणा चाहवै,
लुच्चे माणस(3) उच्चे हो रहये साच्चो नै दबावै!

सिधा माणस मरया चौगर्दै(1) तै रो रहया अपणे करम,
तन कर राख्या बज्र का पर भित्तर(2) तो वो सै नरम,
भाई शर्म-शर्म मै सारया लुटग्या और कैह्ता सरमावै,
थोथा चणा बज रहया घणा असल ना टोहया(3) पावै!

जग मै साफ़ घर मै दागी काम आजकल ऐसा होया,
ईमान और धरम-करम तो बस बात्या(1) का होया,
रोया बुगले वाले आंसू और साथ वो सबका चाहवै,
नाड़(2) काट ले टूक खोस ले पर सुद्धा कहलावै !

दो घडी ईमान गेर कै जब जिया जावै सुख मै,
इमानदारी की राह पै फेर क्यों जीवै जिंदगी दुख़ मै,
इसी रूख(1) मै सबकी सोच ना इस गड्ढे तै बहार आवै,
सोच सबकी वैसी ही होई अन्न वे जैसा खावै!

धोखा आज करया हमनै कल होग्या यो म्हारे साथ,
दो आन्ने की पतीली और दिख जात्ती कुत्ते की जात,
बात सुन कै ही समझ ल्यो ना तो भुगते पाच्छै आवै,
आवाज ना सुर-साज और हरदीप फेर भी गाणा चाहवै!