इलेक्ट्रानिक मीडिया क्या है?
प्रकाशन, संपादन, लेखन अथवा प्रसारण के कार्य को प्रिंट एवं इलेक्ट्रानिक माध्यमों से आगे बढ़ाने की कला को मीडिया कहते है।
इलेक्ट्रानिक मीडिया के संदर्भ में विभिन्न विद्वानों का मत
इलेक्ट्रानिक साधनों के माध्यम से जो जनसंचार होता है वह इलेक्ट्रानिक मीडिया है। (शिक्षाविद् : डॉ. प्रेमचंद पातंजलि)
श्रव्य और दृश्य विधा के माध्यम से तुरत-फुरत सूचना देने वाला माध्यम इलेक्ट्रानिक मीडिया हे। (रेडियो प्रोड्यूसर डॉ0 हरिसिंह पाल)
विशेष रूप से इलेक्ट्रानिक मीडिया से तात्पर्य ऐसी विद्या से है जिसके माध्यम से नई तकनीक के द्वारा व्यक्ति देश-विदेश की खबरों के अलावा अन्य जानकारी भी प्राप्त करता हो। (वरिष्ठ पत्रकार मोहनदास नैमिशराय)
इलेक्ट्रानिक मीडिया जनसंचार माध्यमों में प्रमुख माध्यम है। हजारों मील दूर की गतिविधियों की जीवंत जानकारी इससे पलभर में मिल जाती है।
अशांत मन ही पत्रकारिता की जननी है।
रेडियो, टेलीविजन, सिनेमा, इंटरनेट व मल्टीमीडिया इलेक्ट्रानिक मीडिया के अवयव है।
`नई पत्रकारिता में केवल समाचार प्रसारित करना एकमात्र उद्देश्य नहीं है, बल्कि मनोरंजन, विचार-विश्लेषण, समीक्षा, साक्षात्कार, घटना-विश्लेषण, विज्ञापन और किसी न किसी सीमा तक समाज को प्रभावित करना भी इसके उद्देश्यों में निहित है।
मीडिया समाज का आईना है और जागृति लाने का जरिया भी।
इलेक्ट्रानिक मीडिया का प्रसारण-सिद्धांत
ध्वनि -ध्वनि ही दृश्य चित्र के निर्माण में सहायक होती है। घोड़ों की टाप, युद्ध क्षेत्र का वर्णन, पशु-पक्षियों की चहचहाहट बारिश की बूदें, दरवाजे के खुलने की आवाज, जोर से चीजें पटकने, लाठी की ठक-ठक, चरम चाप की आवाज, बस व रेलगाड़ी के आने की उद्घोषणाएं, रेलवे प्लेटफार्म के दृश्य आदि का आनन्द रेडियों पर ध्वनि द्वारा ही लिया जा सकता है।
चित्रात्मकता-ध्वनियां और चित्रों का एक साथ संप्रेषण ही टेलीविजन की वास्तविक प्रक्रिया है। इसके प्रसारण में चित्रों के साथ-साथ ध्वनि के कलात्मक उपयोग पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
संगीत -संगीत ही मनोंरंजन की एक ऐसी विधा है जिससे मनुष्य ही नहीं बल्कि सर्प, हिरनजैसे पशु भी मुग्घ हो जाते है। संगीत से ही नाटकीयता उभरती है। रोचकता बढ़ती है।
कैमरा-प्रोड्यूसर को शूटिंग के समय, शूटिंग सीक्वेंस का क्रम निर्धारित करना पड़ता है। दूरदर्शन एवं फिल्म लेखन में तीन (S) का प्रयोग प्रचुर मात्राा में होता है यानी शॉट, सीन, सीक्वेंस। वही लेखक दूरदर्शन व सिनेमा में सफल हो सकता है। जिसे अभिनय, गायन, फिल्मांकन एवं संपादन का भरपूर ज्ञान हो।
भाषा :-रेडियो की भाषा आम आदमी से जुड़ी हुई भाषा है जिसे झोपड़ी से लेकर राजमहल तक सुना जाता है । जबकि टेलीविजन की भाषा एक खास वर्ग के लिए है। रेडियो पर आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग किया जाता है। इस भाषा में क्षेत्रीय शब्दों का बहुत महत्वपूर्ण स्थान होता है। जो अपनी परम्परा, संस्कृति धर्म से जुड़े होते है। टेलविजन की भाषा में ग्लोबलाइजेशन है। विदेशी संस्कृति से जुड़े शब्दों का अधिक प्रयोग किया जाता है। आजादी के 55 साल बाद भी छोटे कस्बों में टेलीविजन की आवाज नहीं पहुंच पाई है। रेडियो वहां पहुंच गया है। वाक्य हमेश छोटे-छोटे होने चाहिए। साहित्यिक शब्द श्रोता की रूचि को नष्ट कर देते है।
संक्षिप्तता- इलेक्ट्रानिक मीडिया समयबद्ध प्रसारण है इसलिए थोड़े में बहुत कुछ कह देना इलेक्ट्रानिक मीडिया की विशेषता है।
सृजानात्मक और मीडिया
कविता, कहानी, नाटक, रिपोटाZज, साक्षात्कार, विज्ञापन, अनुवाद, कमेंट्री, फीचर, यात्रावर्णन, पुस्तक समीक्षा आदि साहित्य के सृजनात्मक पहलू है। जब इनका संबंध रेडियो व टेलीविजन से जुड़ जाता है तो ये इलेक्ट्रानिक मीडिया की श्रेणी मे आ जाते है।
सृजनशक्ति परम्परागत जनसंचार माध्यमों से आदिकाल से ही अभिव्यक्त होती रही है पर आधुनिक जनसंचार माध्यमों ने मनुष्य की सृजनशक्ति में चार चांद अवश्य लगाया है।
कठपुतली, नौटंकी, स्वांग, ढोलक आदि माध्यमोें से सृजन अभिव्यक्त होता रहा और ये माध्यम अपनी पैठ बनाते रहे। फिर मुद्रण कला का आगमन हुआ। मनुष्य की सृजनशक्ति प्रिंट व इलेक्ट्रानिक मीडिया के रूप में देखी जाने लगी। दोनों का अपना-अपना घर है। शब्द-संरचना अलग-अलग है। भाषा अलग-अलग है। प्रस्तुतीकरण के तौर-तरीके एकदम भिन्न है।
कहानी कहानी होती है। इसे सुनने की ललक मनुष्य को शुरू से ही रही है। घटना-मूलकता ही पारम्परिक कहानी का प्रधान गुण माना गया है।
आगे क्या हुआ
कथानक, चरित्र, देशकाल, संवाद, भाषा-शैली, उद्देश्य कहानी के प्रमुख तत्व माने गये है।
मीडिया की गोद में आने का मतलब कहानी सर्वव्यापी होनी चाहिए। यानी बच्चे से लेकर वृद्ध उसका आनन्द ले सकें। जब कहानी टेलीविजन के लिए लिखी जाती है तो उसमें दृश्यात्मकता का विशेष ध्यान रखा जाता है।
कथा के दृश्यों को फिल्मांकित करने के लिए विभिन्न लोकेशन, कोणों की योजना में एक साहित्य की विशेष प्रकार की तकनीक का प्रयोग किया जाता है जिसे वर्तमान में हम `पटकथा´ के नाम से जानते है। इस तकनीक में कथा संक्षेप रूप में लिखी जाती है। अनुवाद का अन्त ता है, ती है, ते हैं पर होता है।
कथा के प्रमुख बिन्दुओं का जिक्र करते हुए अगले चरण का संकेत किया जाता है। कथानक का क्रमश: विकास चित्रित किया जाता है। इसके बाद किाा दृश्यों में विभाजित कर दी जाती है। दृश्य-प्रति-दृश्य रूप में लिखि गई साहित्य की तकनीक ही पटकथा कहलाती है। पटकथा के अंतिम प्रारूप में कथा के साथ-साथ कैमरा, ध्वनि, अभिनय आदि का भी पूर्ण निर्देशन होता है।
पटकथा लेकक के भाषा के अलावा मीडिया संबंधी तकनीक का भरपूर ज्ञान होना आवश्यक है। प्रत्येक प्रकार के दृश्य फिल्माने के लिए पहले `मास्टर शौट´ लेना होता है। इसके बाद विषय से संबंधित शॉट लिया जाता हे। मास्टर शॉट के बाद मिड शॉट और फिर टू शॉट बाद में क्लोजअप शॉट लेना होता है।
रिपोटाZज रिपोर्ट मात्र नहीं है बल्कि लेखक का हृदय, अनुभूति, दू-दृष्टि संवेदनशील व्यक्तित्व का होना परम आवश्यक है। उक्त बातों से जो व्यक्ति ओतप्रोत नहीं होता उसे मात्र संवाददाता ही कहा जा सकता है। घटना का मार्मिक वर्णन रिपोर्ताज हैै।
नाटकीयता, रोचकता, उत्सुकता आदि गुण रखने वाला व्यक्ति ही एक अच्छा रिपोर्ताज हो सकता है।
शहर, पहाड़, झील, सम्मेलन आदि विषयों पर अच्छे रिपोर्ताज लिखे जाते है।
विषय विशेषज्ञ, साहित्कार, कलाकार, राजनीतिज्ञ, समाज सुधारक आदि का अक्सर साक्षात्कार प्रिंट मीडिया से लेकर इलेक्ट्रानिक मीडिया में प्रचुर मात्रा में लिखा जाता है।
दो व्यक्तियों की मानसिकता इस विधा के द्वारा पढ़ी, सुनी व देखी जा सकती है। एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से बात कहलवाकर सच्चाई की तर तक पहुंचता है।
पन्द्रह अगस्त, छब्बीस जनवरी, राष्ट्रीय नेता की शवयात्रा, खेलों का आंखों-देखा हाल जब हम रेडियो व टेलीविजन पर सुनते हैं तो उसे कमेंट्री कहते है।
कमेंट्रीकर्ता को घटना की प्रत्येक चीज का वर्णन करना पड़ता है। खेल कमेंट्री उत्तेजक व रोमांचक होतीह है जबकि शवयात्रा की भावविह्वलता पूर्ण।
कमेंत्री चाहे रेडियों के लिए हो या टेलीविजन के लिए पर कमेंत्रीकर्ता का स्वर घटना के अनुकूल ही होना चाहिए।
सामग्री को पहले अच्छी तरह से पढ़ लेना चाहिए।
उच्चारण इस विधा में पहला गुण है। तकनीक ज्ञान भी होना चाहिए।
समाचार लेखन
रेडियो-समाचार बुलेटिन एवं समाचार दर्शन रेडियो समाचार के दो रूप है। बुलेटिन में देशी व विदेशी समाचार रखा जाता है। देशी व विदेशी समाचार का मतलब होता है कि जब समाचार पूरे देश से संबंध रखता है तो उसे राष्ट्रीय स्तर का समाचार कहते है, पर जहां समाचार का स्वर राष्ट्रीय स्तर का न होकर राज्य स्तर का हो तो प्रसारित होता है। रेडियो पर प्रसारित समाचार को हम बुलेटिन कहते है। जबकि समाचार दर्शन से अभिप्राय उस समाचार से है जिसमें खेल प्रतियोगित, दुघZटना स्थल, बाढ़ का आँखों देखा हाल, साक्षात्कार, व्याख्यान, रोचक घटनाओं का वर्णन आता है।
बोलने से पहले समाचार कागज पर छोटे व सरल वाक्यों में लिखा जाता है। इस लिखे हुए रूप को रेडियो-िस्क्रप्ट कहते है। श्रोता को हमेशा यही लगे कि समाचार वाचक कंठस्थ बोल रहा है।
रेडियो समाचार की भाषा सरल होनी चाहिए। साहित्यिक भाषा का पुट कदापि न होना चाहिए। यह मानकर लिखना चाहिए कि मुझे समाचार अनपढ़ व्यक्ति को सुनाना है। समाचार में दैनिक भाषा का प्रयोग करना चाहिए।
वाक्य में उतने शब्द होने चाहिए जितने एक सांस में बोले जा सकें। क्या, क्यों, कब, कहाँ, किसने तथा कैसे आदि छह शब्द रेडियो समाचार के मुख्य अवयव है अत: इन छह अवयवों को ध्यान में रख कर समाचार तैयार करना चाहिए।
रेडियो समाचार लेखन में तारीख के स्थान पर दिन का प्रयोग होता है। महीने व साल का नाम देने के स्थान पर `आज´, रविवार, सोमवार या यूँ कहिए कि `इस सप्ताह´, `इस महिने´, अगले महीने, पिछले वर्ष, अगले वर्ष आदि शब्दों का प्रयोग किया जाता है। उपयुZक्त क्रमश: पर्वोक्त, अप्रसन्नता, साधन अपर्याप्त आदि शब्दों का प्रयोग कभी नहीं करना चाहिए।
स्क्रप्ट लिखते समय पंक्ति स्पष्ट, शब्द अलग-अलग, कागज के दोनों ओर समान हाशिया के अलावा पृष्ठ समाप्त होने से पहले वाक्य समाप्त कर देना चाहिए।
छोटी संख्या को हमेश अंकों में तथा बड़ी संख्या को शब्दों में लिखना चाहिए। इसके भी दो तरीके है-पहला तो यह है कि बारह हजार चार सौ पच्चीस, दूसरा तरीका है 12 हजार 4 सौ पच्चीस (12425)
मुख्य समाचारों को सदैव बोल्ड किया जाता है जिसे समाचार वाचक उस पर जोर देकर पढ़ सके।
रेडियो पर अक्सर, 5,10,15 मिनट का समाचार बुलेटिन होता है। 2 मिनट का समाचार संक्षिप्त में दिया जाता है जब कि दस व पन्द्रह मिनट का समाचार तीन चरणों में बांटा जाता है। पहले चरण में मुख्य समाचार तथा दूसरे चरण में विस्तरपूर्वक समाचार तथा अंतिम चरण में पुन: मुख्य समाचार बोले जाते है।
रेडियो पत्रकारिता समय सीमा के अन्तर्गत चलती है इसलिए इस पत्रकारिता की खूबी है कि 20 या 30 शब्दों में समाचार तैयार करें।
10 मिनट के बुलेटिन में चार से छह तथा 15 मिनट के बुलेटिन में छह से आठ तक हेड लाइन्स होती है।
15 हजार शब्दों का एक बुलेटिन होता है।
टेलिविजन
टेलिविजन के लिए लिखने वाला व्यक्ति दृश्य व बिम्बों पर सोचता है। टेलीविजन समाचार के दो पक्ष होते हैं। पहले पक्ष में समाचार लेखन, समाचार संयोजन के अलावा दृश्य संयोजन एवं सम्पादन-कार्य आता है। वाचन कार्य दूसरे पक्ष में रखा गया है।
समाचार तैयार करते समय समाचार से संबंधित दृश्यात्मकता पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
ग्राफ्स, रेखाचित्र एवं मानचित्रों का भी संयोजन एक तरीकेबद्ध किया जाता है। समय-सीमा का भी पूर्ण ध्यान रखना पड़ता है।
टेलिविजन समाचार सम्पादक का काम बड़ा चुनौतीपूर्ण होता है। समाचार के साथ दृश्य संलग्न करना। समाचार व दृश्य सामग्री की समय-सीमा भी निर्धारित करनी होती है। टेलीविजन पर समाचार संवाददाता ही समाचार वाचक भी हो सकता है और नहीं भी।
चित्रों का सम्पादन -क्रम में समाचार वाचन करना होता है।
टेलीविजन समाचार को रेडियो की भांति तीन चरणों में विभाजित किया जाता है। पहले और तीसरे चरण को मुख्य समाचार कहते हैं। दूसरा चरण विस्तारपूर्वक समाचारों का होता है। प्रत्येक बुलेटिन मे छ: या आठ मुख्य समाचार होते है। मुख्य समाचार संक्षिप्त होते है। सम्पादक समाचारों की चार प्रतियां तैयार करता है। फ्लोर मैनेजरर, वाचक एवं प्रोड्यूसर को एक-एक प्रति दी जाती है। चौधी प्रति वह स्वयं अपने पास रखता है।
नवीनता, स्पष्टता, संक्षिप्ता एवं भाषा का पूर्ण ध्यान रखना चाहिए।
इसलिए टेलिविजन समाचारों में घटनाक्रम, चित्रात्मकता, संक्षिप्तता, संभाषणशीलता, समय-सीमा के अलावा रोचकता विशेष गुण माने गये है।
समाचार वाचन
रेडियो वाचन
रेडियो प्रस्तुतीकरण के लिए स्वाभाविकता, आत्मीयता एवं विविधता का हमेशा ध्यान रखना चाहिए।
प्रिंट मीडिया हमें 24 घंटे बाद समाचार देता है जबकि रेडियो से हमें तुरन्त समाचार उपलब्ध हो जाता है। रेडियो से हम प्रति घंटे देश-विदेश की नवीनतम घटनाओं से अवगत होते हैं पर ऐसा संचार के अन्य माध्यमों से संभव नहीं है।
रेडियो समाचार के तीन चरण है-पहले चरण में समाचार विभिन्न स्रोतों से संकलित किया जाता है। दूसरे चरण में समाचारों का चयन होता है तथा तीसरे चरण में समाचार लेखन आता है।
समाचार जनहित एवं राष्ट्रहित होना चाहिए। समाचार सम्पादक मान्यता प्राप्त माध्यमों से ही समाचार स्वीकार करता है।
समाचार छोटे वाक्य एवं सरल भाषा में लिखा जाता है। समाचार संक्षिप्त एवं पूर्ण लिखा जाता है। समाचार में आंकड़ों को कम ही स्थान दिया जाता है। समाचार लिखने के बाद समाचार सम्पादक एक बार पुन: समाचार का अवलोकन करता है। इसके बाद समाचार को `पूल´ में रखा जाता है। पूल का मतलब होता है जहां से समाचार वाचक को समाचार पढ़ने को दिया जाता है। पूल को तीन भागों में रखा गया है-पहले भाग में देशी समाचार रखे जाते है। राजनीतिक समाचार भी इस पूल में रखे जाते है। दूसरे भाग में विदेशी समाचार को रखा जाता है। खेल समाचार तीसरे पूल में रखे जाते है। प्रत्येक बुलेटिन के लिए अलग-अलग पूल होता है। संसद समाचारों के लिए अलग पूल की व्यवस्था होती है।
बुलेटिन की जीवंतता, सफलता और प्रभावपूर्णता सम्पादक की कुशलता की परिचायक होती है। समाचारों में विराम की भी व्यवस्था है। इस अवसर पर समाचार वाचक कहता है-`ये समाचार आप आकाशवाणी से सुन रहे हैं, या ये समाचार आकाशवाणी से प्रसारित किये जा रहे है।
मीडिया की जानकारी के लिए आपका धन्यवाद !!
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद जी
ReplyDeleteसर इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के केवल दो ही मुख्यत अवयव माने जाते है - 1. रेडियो 2. TV .|
ReplyDeleteऔर इन्टरनेट को नये मीडिया मे रखा गया।हमे यह बताया गया। क्या यह सही है?
thanks
ReplyDeleteIntresting hai or samjhna assan bhi
ReplyDeleteIntresting hai or samjhna assan bhi
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteSir
Thanks for the information
ReplyDeleteThanks
ReplyDeleteThanks for the information
ReplyDeletemedia ki jankari k liye sahradaya dhanyawad or wo bhi matra bhasha hindi me jai hind
ReplyDeleteThanks dear sir about NEWS and media defrents
ReplyDeleteसटीक जानकारी दी गई है।
ReplyDeleteसरजी ele. meadia प्रारम्भकरने के लिए जानकारी दीजिये ।
ReplyDeleteThank's sir it's a very important and
ReplyDeleteDitel for the electronic media
यु ट्युब पर न्यूज चॅनेल चला ने के लीये कहा पे रजिस्ट्रेशन करणा पडेगा
ReplyDeleteप्लिज बता दो