खाप के कोप का शिकार परिवार
श्याम सुंदर
बीबीसी संवाददाता, दिल्ली
रविंद्र और शिल्पा को शादी के समय पता नहीं था कि उनके गोत्र एक हैं.
खाप पंचायतों में लड़के लड़कियों के ख़िलाफ़ फ़ैसले तो होते रहे हैं लेकिन रिसाल सिंह उन लोगों में से हैं जिनके फ़ैसले का ख़ामियाजा अब उनके परिवार को ही भुगतना पड़ रहा है.
सात साल पहले जौणदी गांव में रिसाल सिंह ने उस खाप पंचायत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी जिसने गोत्र विवाद को लेकर सात परिवारों को गांव से निकलने का हुक्म सुनाया था.
समय का पहिया घूमा और आज रिसाल के पोते रविंद्र सिंह और उनकी पत्नी शिल्पा की शादी को लेकर उनके पूरे परिवार को गाँव छोड़ने का दबाव झेलना पड़ रहा है.
असल मे रविंद्र जब पांच साल का था जब उसकी बुआ उसको लेकर दिल्ली के सुल्तानपुर डबास गांव ले आई थी.
अप्रैल महीने में रविंद्र की शादी हुई. शादी के कुछ महीने बाद रविंद्र अपनी पत्नी शिल्पा को लेकर अपने पुश्तैनी गांव ढराणा गए. वहां महिलाओं ने बातों बातों में शिल्पा से उसका गांव और गोत्र पूछ लिया और जैसे ही ये बात आम हुई कि शिल्पा कादियान गोत्र की है झंझट शुरु हो गया.
जब रिसाल सिंह ने साल साल पहले सात परिवारों को गांव से निकालने का फ़रमान दिया था तो आज वो अपने पोते को कैसे एक ही गोत्र में शादी की अनुमति दे सकता है
राज सिंह कादयान, खाप पंचायत सदस्य
रविन्द्र-शिल्पा और उनके परिवार की मुसीबत शुरु हो गई. ढराणा गांव मे कादियान गोत्र के लोग बहुमत में है और खाप पंचायत के नियम के हिसाब से शिल्पा इस गांव की बहू नही बन सकती थी. कादियान खाप ने पंचायत बुलाई औऱ फ़ैसला सुनाया कि अब इस परिवार के सामने दो विकल्प हैं पहला कि रविंद्र और शिल्पा की शादी तोड़ दी जाए और दूसरा ये ख़ानदान गांव छोड़ दे.
इस फ़रमान ने इस परिवार का जीना मुहाल कर दिया है. रविंद्र किसी कीमत पर शिल्पा को नही छोड़ना चाहता है. जब दोनों पर दबाव बढ़ा तो रविंद्र ने ज़हर खाकर जान देने की कोशिश की.
इस परिवार की हालत पर किसी को भी तरस आ सकता है .
इन बीते सालों के बाद आज रिसाल सिंह का परिवार अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है.
खाप पंचायत के राज सिंह कादयान कहते हैं कि जब रिसाल सिंह ने सात साल पहले सात परिवारों को गांव से निकालने का फ़रमान दिया था तो आज वो अपने पोते को कैसे एक ही गोत्र में शादी की अनुमति दे सकते हैं.
रविंद्र ने पंचायत को वचन दिया है कि वो अपने पुश्तैनी गांव ढराणा में कभी क़दम नहीं रखेगा पर पंचायत अब भी अड़ी है कि रिसाल सिंह के परिवार को गांव छोड़ना ही होगा.
रिसालसिंह की तीसरी पीढ़ी यानि रविंद्र कहते हैं कि इन पंचायतों को लोगों की ज़िदंगी के फ़ैसले करने का कोई हक़ नही है. वो कहते हैं ज़माना बदल चुका है.
रविंद्र की पत्नी कहती है अगर उसे पता होता की उनकी शादी पर इतना बवाल होगा तो वो कभी ये शादी ना करती.